________________
भंगवता सूत्र-स. १५ गाशालक का भावा मनुष्य-भव
२४७५
णामं मंखलिपुत्ते से णं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उबवणे ? ___३८ उत्तर-एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले णामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किचा उइदं चंदिम मृरिय० जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववणे । तत्थ णं अत्यगइयाणं देवाणं वावीमं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स वावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
कठिन शब्दार्थ-कुसिस्से-वृशिप्य ।
भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य मंखलिपुत्र गोशालक था। वह काल के समय में काल कर के कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ?
३८ उत्तर-हे गौतम ! मेरा अन्तेवासी कुशिष्य मंखलिपुत्र गोशालक, जो श्रमणों की घात करने वाला था यावत् वह छद्मस्थावस्था में ही काल के समय में काल कर के ऊँचा चन्द्र और सूर्य का उल्लंघन कर यावत् अच्युत कल्प में देवपने उत्पन्न हुआ है। वहाँ कई देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की कहीं गई है। उनमें गोशालक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है।
गोशालक का भावी मनुष्य-भव
३९ प्रश्न-से णं भंते ! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org