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भगवती सूत्र-स. ५५ सुनक्षत्र अनगार की गति
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विनीत था और जिसे मंखलिपुत्र गोशालक ने अपने तप-तेज से जला कर भस्म कर दिया था, वह मर कर कहां गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ?
३६ उत्तर-हे गौतम ! मेरा अन्तेवासी पूर्व देशोत्पन्न सर्वानुभुति अनगार, गोशालक के तप-तेज से भस्म हो कर ऊंचा चन्द्र और सूर्य को यावत् ब्रह्मलोक, लान्तक और महाशुक्र कल्प को उल्लंघन कर, सहस्रार कल्प में देव रूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ के कई देवों की स्थिति अठारह सागरोपम को कही गई है । सर्वानुभूति देव की स्थिति भी अठारह सागरोपम की है । वहाँ का आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर वह सर्वानुभूति देव, वहाँ से च्यव कर यावत् महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा।
सुनक्षत्र अनगार की गति
३७ प्रश्न-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कोसलजाणवए मुणखत्ते णामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए, से णं भंते ! तया णं गोसालेणं मंखलिपुत्तेण तवेणं तेएणं परिताविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववण्णे ?
३७ उत्तर-एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी सुणक्खत्ते णाम अणगारे पगइभदए जाब विणीए. से णं तया गोसालेणं मंखलि. पुतेण तवेणं तेएणं परिताविए समाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सयमेव पंच महन्वयाई आरुहइ, सयमेय० २ आरुहित्ता समणा य
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