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________________ २४७२ भगवती सूत्र-ग. १५ मनानुभूति की गति सर्वानुभूति की गति ३६ प्रश्न-'भंते' ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयामी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवामी पाईणजाणवए सव्वाणुभूईणामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए, से णं भंते ! तया गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए, कहिं उबवण्णे ? । ___३६ उत्तर-एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सब्बाणुभूइणामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए, से णं तया गोसालेणं मंखलिपुत्तण भासरासीकए समाणे उड्ढे चंदिम-सूरिय० जाव वंभ-लंतक महामुक्के कप्पे वीइवत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववणे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं मवाणुभूइस्स वि देवस्स अट्ठारस सागरो. वमाइं ठिई पण्णत्ता । से णं सव्वाणुभूई देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं ठिइक्खएणं जाव महाविदेहे वासे सिम्झिहिति जाव अंतं करेहिति । कठिन शब्दार्थ-वीइवइत्ता-उल्लंघन करके । भावार्थ-३६ प्रश्न-भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार कर के इस प्रकार पूछा-“हे भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी पूर्व देश में उत्पन्न मर्यानुभूति अनगार, जो प्रकृति से भद्र यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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