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________________ भगवती सूत्र - श. १५ रोगोपशमन सीहस्स अणगारस्स अंतियं एयमहं सोचा णिसम्म हट्टतुट्टा जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छछ, तेणेव उवागच्छित्ता पत्तगं मोएइ, पत्तगं मोएत्ता जेणेव सीहे अणगारे तेणेव उवागच्छह, तेणेव उवागच्छित्ता सीहस्स अणगारस्स पडिग्गहगंसि तं सव्वं संमं णिस्सिरइ ? तरणं ती रेवईए गाहावरणीय तेणं दव्वसुधेणं जाव दाणे सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए णिबधे, जहा विजयस्स जाव जम्मजीवियफले रेवईए गाहावइणीए रेवई ० २ । २४७० भावार्थ - रेवती गाथापत्नी ने सिंह अनगार की बात सुन कर कहा - "हे सिंह ! ऐसे कौन ज्ञानी और तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरी यह गुप्त बात जानी और तुम से कहा, जिससे कि तुम जानते हो ।" दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक में स्कन्दक के अधिकार वर्णन अनुसार यावत् भगवान् के कहने से मैं जानता हूं- ऐसा सिंह अनगार ने कहा । सिंह अनगार की बात सुन कर रेवती गाथापत्नी अत्यन्त हृष्ट एवं सन्तुष्ट हुई । उसने रसोई घर में आ कर पात्र को खोला और सिंह अनगार के निकट आ कर वह सारा पाक उनके पात्र में डाल दिया । रेवती गृहपत्नी के द्रव्य की शुद्धि युक्त प्रशस्त भावों से दिये गए दान से सिंह अनगार को प्रतिलाभित करने से रेवती गाथापत्नी ने देव का आयुष्य बांधा यावत् इसी शतक में कथित विजय गाथापति के समान 'रेवती ने जन्म और जीवन का फल प्राप्त किया है' - ऐसी उद्घोषणा हुई । Jain Education International रोगोपशमन तर से सोहे अणगारे रेवईए गाहावड़णीए गिहाओ पडि - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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