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________________ भगवती सूत्र - १५ रेवती को आश्चर्य और औषधि दान " हे रेवती ! तुमने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के लिये जो कोहले के दो फल संस्कारित कर के तैयार किये हैं, उनसे मेरा प्रयोजन नहीं हैं, किन्तु मार्जार नामक वायु को शान्त करने वाला बिजोरा - पाक जो कल का बनाया हुआ है, वह मुझे दो, उसी से प्रयोजन है । विवेचन इस प्रकरण के मूलपाठ में 'दुवे कवोयसरीरा' तथा 'कुक्कुडमंसए' पाठ आया है । जिसका अर्थ है - कपांत अर्थात् कबूतर पक्षी के शरीर के वर्ण के समान वर्ण है जिसका ऐसा फल अर्थात् कुष्मांड - कोहला फल । 'मज्जारकडए कुक्कुडमंसए' का अर्थ हैमार्जार नामक उदरवायु को शांत करने वाला कुकुंट मांस अर्थात् विजौरे का गिर अथवा मार्जार का अर्थ है - विरालिका नामक वनस्पति विशेष, उससे भावित विजौरे का गिर अर्थात् विजौरा पाक | २४६९ कोई-कोई 'कवोयसरीरा' का अर्थ 'कबूतर पक्षी का शरीर ऐसा अर्थ करते हैं तथा ' मज्जारकडए कुक्कुडमंसए' का अर्थ-विलाव द्वारा मारे हुए कुकडे (मुर्गे ) का मांस - करते हैं, किन्तु यह अर्थ गलत है । जो लोग आगम- रहस्य के ज्ञाता नहीं हैं अथवा जो जानबूझ कर आगम का विपरीत अर्थ करके लोगों को श्रद्धा-भ्रष्ट करना चाहते हैं, वे ही ऐसा आगम विपरीत अर्थ करते हैं । इस विषय में स्वर्गीय शतावधानी पं. मु. श्री रत्नचन्द्रजी महाराज साहब ने 'रेवती दान समालोचना' नामक एक पुस्तक लिखी है । उसमें इस विषय पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला है । जिज्ञासुओं को वह पुस्तक अवश्य देखनी चाहिए । Jain Education International रेवती को आश्चर्य और औषधि दान तपणं सा रेवई गाह्रावणी सीहं अणगारं एवं क्यासी- 'केस सीहा ! सेणाणी वा वस्सी वा, जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वमखाए, जओ गं तुमं जाणासि ? एवं जहा खंदए जाव जओ णं अहं जाणामि । तरणं सा रेवई गाहावड़णी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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