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भगवती सूत्र-ग. १५ रेवती के घर
गाहावइणीए गिहं अणुप्पवितु । तएणं सा रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एजमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठ-तुट० खिप्पामेव आसणाओ अब्भुटेइ, अभुट्टित्ता सीहं अणगारं सत्तट्टपयाई अणुगच्छड़ स० २ अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ आ० २ करित्ता वंदइ णमंसह वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'संदिसंतु णं देवाणु. प्पिया ! किमागमणप्पओयणं' ? तएणं से सीहे अणगारे रेवइं गाहावइणिं एवं वयासी-एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए ! समणरस भगवओ महावीरस्स अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं णो अट्ठो, अस्थि ते अण्णे पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए एयमाहराहि, तेणं अट्ठों।
कठिन शब्दार्थ-अतुरियमचवलमसंभंत-शीघ्रता, चपलता एवं संभ्रांति रहित किमागमणप्पओयणं-आगमन का क्या प्रयोजन है ?
भावार्थ-श्रमण भगवान महावीर स्वामी से आदेश पा कर सिंह अनगार प्रसन्न एवं सन्तुष्ट यावत् प्रफुल्लित हुए और भगवान् को वन्दना-नमस्कार कर के त्वरा, चपलता और उतावल से रहित, मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन किया यावत् गौतम स्वामी के समान भगवान को वन्दना-नमस्कार कर के शाल-कोष्ठक उद्यान से निकल कर, त्वरा और शीघ्रता रहित यावत् मेंढिक ग्राम नगर के मध्यभाग में हो कर रेवती गाथापत्नी के घर पहुंचे और घर में प्रवेश किया। सिंह अनगार को आते हुए देख कर रेवती गाथापत्नी प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुई । वह शीघ्र ही अपने आसन पर से उठी और सात-आठ चरण, सिंह अनगार के सामने गई और तीन वार प्रदक्षिणा करके वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार बोली-"हे देवानुप्रिय ! आपके पधारने का प्रयोजन क्या है ?" तब सिंह अनगार ने कहा
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