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भगवती सूत्र-श. १५ रेवती के घर
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रिका में वर्तते हुए तुम्हें इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ यावत् अत्यन्त रुदन करने लगे, हे सिंह ! क्या यह बात सत्य है ?” (उत्तर) "हाँ, भगवन् ! सत्य है ।" "हे सिंह ! गोशालक के तप-तेज द्वारा पराभूत हो कर में छह मास के अन्त में यावत् काल नहीं करूंगा। मैं साढे पन्द्रह वर्ष तक जिनपने गंधहस्ती के समान विचरूँगा । हे सिंह ! तू मेंढिक ग्राम नगर में रेवती गाथापत्नी के घर जा । उस रेवती गाथापत्नी ने मेरे लिये दो कोहला के फलों को संस्कारित कर तैयार किया है, उनसे मुझे प्रयोजन नहीं है, परन्तु उसके वहाँ मार्जार नामक वायु को शान्त करने वाला विजोरापाक जो कल तैयार किया हुआ है, उसे ला । वह मेरे लिए उपयुक्त है।"
रेवती के घर
तएणं से सीहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुटु० जाव हियए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अतुरियमचवलमसंभंतं मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, मु० २ पडिलेहित्ता जहा गोयमसामी जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ सालकोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिरखमित्ता अतुरिय० जाव जेणेव मेंढियगामे णयरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता मेंढियगामं णयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव रेवईए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता रेवईए
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