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भगवती सूत्र-श. १५ सिह अनगार का शोक
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तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउम्भूए उज्जले जाव दुरहियासे, पित्तज्जरपरिगयसरीरे, दाहवक्कंतीए यावि विहरइ, अवियाई लोहियवच्चाई पि पकरेइ, चाउवणं वागरेइ-'एवं खलु समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अण्णाइटे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगय. सरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करिस्सइ ।'
कठिन शब्दार्थ-रोगायंके-रोगातंक-पीड़ाकारी रोग और व्याधि, पाउम्भ ए-प्रकट हुआ, दुरहियासे-कठिनाई से सहन करने योग्य, अवियाई लोहियवच्चाई पि पकरेइ-रक्त युक्त दस्त भी लगने लगे।
भावार्थ-उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शरीर में महापीड़ाकारी, अत्यन्त दाह करने वाला यावत् कष्टपूर्वक सहन करने योग्य तथा जिसने पित्तज्वर के द्वारा शरीर को व्याप्त किया है एवं जिससे अत्यन्त दाह होता है, ऐसा रोग उत्पन्न हुआ। उस रोग के कारण रक्त-राद (पीब) युक्त दस्त लगने लगे। भगवान् के शरीर की ऐसी दशा जान कर चारों वर्ण के मनुष्य इस प्रकार कहने लगे-"श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, गोशालक के तप-तेन से पराभूत पित्तज्वर एवं ज्वर से पीड़ित हो कर छह मास के अन्त में छद्मस्थ अवस्था में मृत्यु प्राप्त करेंगे।"
सिंह अनगार का शोक
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सौहे णामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए मालुया.
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