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भगवती सूत्र-श. १५ प्रतिष्ठा की महती लालसा
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आकार 'हल्ला' होती है। (तत्पश्चात् उन्माद के वश गोशालक कहता है) "हे वीरा!बीणा बजाओ। हे वीरा! वीणा बजाओ।" तत्पश्चात् मंखलिपुत्र गोशालक से अपने प्रश्न का उत्तर सुन कर हृष्टतुष्ट चित्त वाले अयंपुल ने उसे वन्दन-नमस्कार किया, प्रश्न पूछे, अर्थ ग्रहण किया और गोशालक को वन्दन-नमस्कार करके यावत् अपने स्थान पर चला गया।
विवेचन-'हल्ला' का आकार वंशी-मूल संस्थित लिखा है तथा लोक प्रसिद्ध तृण गोवालिका के समान बतलाया है।
प्रतिष्ठा की महती लालसा
_____३२-तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते अप्पणो मरणं आभोएइ, आभोइत्ता आजीविए थेरे सद्दावेइ, आजीविए थेरे सद्दावित्ता एवं वयासी-'तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं कालगयं जाणित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पहाणेह, सुरभिणा गंधोदएणं पहावित्ता पम्हलसुकुमालाए गंधकासाईए गायाई लूहेह, गायाइं लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपह, स० २ अणुलिंपित्ता महरिहं हंसलक्खणं पडसाडगं णियंसेह, मह० २ णियंसित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेह, स० २ करिता पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं दुरूहेह, पुरि० २ दुरूहित्ता सावत्थीए णयरीए सिंघाडग० जाव पहेसु महया महया सदेणं उग्घोसेमाणा २ एवं वयह-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलि.
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