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भगवती सूत्र - १५ आजीविकोपासक अयंपुल
आम्रफल को एकान्त में डालने के लिए संकेत किया। उसका संकेत जान कर गोशालक ने आम्रफल को एक ओर डाल दिया । इसके पश्चात् अयंपुल गोशालक के पास गया और उसे तीन बार प्रदक्षिणा करके यावत् पर्युपासना करने लगा ।
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'अयंपुलाई !' गोसाले मंखलिपुत्ते अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वयासी - ' से णूर्ण अयंपुला ! पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव जेणेव ममं अंतियं तेणेव हव्वमागए । से णूर्ण अयंपुला ! अडे समट्टे ? हंता अस्थि, तं णो खलु एस अंबकूणए, अवचोयए णं एसे । किंसंठिया हल्ला पण्णत्ता ? वंसीमूलमंठिया हल्ला पण्णत्ता । ati area रे वीरगा । वीणं वाएहि रे वीरगा । तपणं से अयंपुले ! आजीवियोवास गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं इमं एयारुवं वागरणं वागरिए समाणे हट्ट तुडे जाव हियए गोसालं मंखलिपुत्तं वंद णमंस, वंदित्ता णमंसित्ता परिणाई पुच्छड़, पसिणाई पुच्छित्ता अट्ठाई परियादियह, अट्ठाई परियादियत्ता उडाए उडेइ, उट्टाए उट्टेत्ता गोसालं मंखलिपुत्तं वंदह णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता जाव पडिगए ।
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भावार्थ- गोशालक ने अयंपुल से पूछा - "हे अयंपुल ! रात्रि के पिछले पहर में यावत् तुझे संकल्प उत्पन्न हुआ, जिससे तू मेरे पास आया है, क्या यह बात सत्य है ?" "हाँ भगवन् ! सत्य है ।" "हे अयंपुल ! मेरे हाथ में आम की गुठली नहीं थी, आम्रफल की छाल थी । हे अयंपुल ! तुझे 'हल्ला' का आकार जानने की इच्छा हुई थी, उसका उत्तर यह है कि बांस के मूल के
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