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भगवती सूत्र-श. १५ आजीविकोपासक अयंपुल
हे अयंपुल ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक हालाहला कुम्भारिन की दूकान में आम्रफल हाथ में लेकर यावत् अञ्जलि करते हुए विचरते हैं। वे भगवान् गोशालक आठ चरम की प्ररूपणा करते हैं । यथा-चरमपानक यावत् वे सब दुःखों का अन्त करेंगे । हे अयंपुल ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक मिट्टी मिश्रित शीतल पानी से अपने शरीर का सिंचन करते हुए विचरते हैं। इस विषय में भी वे भगवान् चार पानक और चार अपानक की प्ररूपणा करते हैं, यावत् वे सिद्ध होते हैं और समस्त दुःखों का अन्त करते हैं, अतः हे अयंपुल ! तू जा और तेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक को अपना प्रश्न पूछ ।
३१-तपणं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीविएहि थेरेहि एवं वुत्ते समाणे हट्ट तुडे उट्टाए उट्टेइ, उट्टाए उद्वेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तएणं ते आजीविया थेरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंवकूणगएडावणट्टयाए एगंतमंते मंगारं कुवंति । तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते आजीवियाणं थेराणं संगारं पडिच्छइ, संगारं पडिच्छित्ता अंबकूणगं एगतमंते एडेइ । तएणं से अयंपुले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ,तेणेव उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं तिक्खुत्तो० जाव पज्जुवासइ ।
कठिन शब्दार्थ-संगारं-संकेत, एगंतमते-एकान्त स्थान ।
भावार्थ-३१-आजीविक स्थविरों के कहने पर अयंपुल हृष्टतुष्ट हुआ और गोशालक के पास जाने लगा, तब आजीविक-स्थविरों ने गोशालक को उस
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