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भगवती सूत्र - श. १५ आजीविकोपासक अपुल
जाव सावत्थि णयरीं मज्झमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए । से णूणं ते अयंपुला ! अट्ठे समट्टे ? हंता अस्थि । जं पि य अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मो एसए गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावर्णसि अत्रकूणहत्थगए जाव अंजलिं करेमाणे विहर, तत्थ वि णं भगवं इमाई अटु चरिमाई पण्णवेइ, तं जहा- चरिमे पाणे, जाव अंतं करिस्स' | जे विय अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवएस गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टिया० जाव विहरइ, तत्थ वि
भगवं इमाई चत्तारि पाणगाई, चत्तारि अपाणगाई पण्णवे । से किं तं पाणए ? २ जाव तओ पच्छा सिज्झइ, जाव अंतं करेइ । तं गच्छ णं तुमं अयंपुला ! एस चैव तव धम्मायरिए धम्मो एसए गोसाले मंखलिपुत्ते इमं एयारूवं वागरणं वागरित्तए' त्ति ।
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कठिन शब्दार्थ - एत्तओ - यहाँ ।
भावार्थ-तब आजीविक स्थविरों ने, आजीविकोपासक अयंपुल को लज्जित होकर पीछे जाते हुए देखा तो उसे सम्बोधन कर कहा - " हे अयंपुल ! यहाँ आओ ।" आजीविक स्थविरों से सम्बोधित होकर अयंपुल उनके पास आया और उन्हें वन्दना नमस्कार कर के उन के समीप बैठ कर पर्युपासना करने लगा । तब आजीविक स्थविरों ने उससे कहा - " हे अयंपुल ! आज पिछली रात्रि के समय यावत् तुझे ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि 'हल्ला' का आकार कैसा होता है, यावत् में मेरे धर्माचार्य गोशालक को पूछ कर निर्णय करूं," यावत् तू आया है । " हे अयंपुल ! यह बात सत्य है ?" (अयंपुल ने कहा ) "हाँ, सत्य है ।"
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