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भगवती सूत्र-श. १५ आजीविकोपासक अयंपल
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उत्पन्न ज्ञान, दर्शन को धारण करने वाले यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी है । वे इसी श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुम्भारिन की दुकान में आजीविक संघ सहित, आजीविक सिद्धान्त से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं । अतः कल प्रातःकाल यावत् सूर्योदय होने पर गोशालक को वन्दन और पर्युपासना कर यह प्रश्न पूछना मेरे लिये श्रेयस्कर है । ऐसा विचार कर दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर स्नान-बलिकर्म किया, फिर अल्पभार और महामूल्यवान् आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत कर वह अपने घर से बाहर निकला और पैदल चलता हुआ हालहला कुम्भारिन की दूकान पर आया। उसने गोशालक को हाथ में आम्रफल लिये हुए यावत् हालाहला कुम्भारिन को बारंबार अंजलि-कर्म करते हए एवं मिट्टी मिश्रित शीतल जल द्वारा अपने शरीर के अवयवों को सिंचन करते हुए देखा और देखते ही लज्जित, उदास और ब्रीडित (अधिक लज्जित) हुआ। वह धीरे धीरे पीछे हटने लगा।
तएणं ते आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं लजिय जाव पच्चोसक्कमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-एहि ताव अयंपुला ! एत्तओं । तएणं से अयंपुले आजीवियोवासए आजी. वियथेरेहिं एवं वुत्ते समाणे जेणेव आजीविया थेरा तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता आजीविए थेरे वंदइ णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता णचासण्णे जाव पज्जुवामइ । “अयंपुला इ!” आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वयासी-'से णूणं ते अयंपुला ! गुब्बरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव किंसंठिया हल्ला एण्णता ? तएणं तव अयं पुला ! दोच्चं पि अयमेया० तं चेव सव् भाणियव्वं,
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