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भगवती सूत्र-श. १५ आजीविकोपासक अयंपुल
सावत्थीए णयरीए हालाहलाए कुंभकारीए कंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिवुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहग्इ, तं सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते गोसालं मंखलिपुत्तं वंदित्ता जाव पज्जुवासेत्ता इमं एयारूवं वागरणं वागरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, एवं संपेहित्ता कल्लं जाव जलंते पहाए कय० जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे, साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, सा० २ पडि. णिक्खमित्ता पायविहारचारेणं सावत्थिं णयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावर्णसि अंबकूणगहत्थगयं जाव अंजलिकम्मं करेमाणं सीयलएणं मट्टिया० जाव गोयाइं परिसिंचमाणं पासइ, पासित्ता लजिए, विलिए, विड्डे सणियं २ पञ्चोसकइ ।
कठिन शब्दार्थ-हल्ला-गोवालिका (तृण के समान आकार वाला एक कीड़ा) साओ-अपने, विड्डे-लज्जित हुआ।
भावार्थ-३०-उस श्रावस्ती नगरी में अयंपुल नाम का आजीविक मत का उपासक रहता था। वह ऋद्धि सम्पन्न यावत् अपराभूत था। वह हालाहला कुम्भारिन की तरह यावत् आजीविक सिद्धान्त से अपनी आत्मा को भावित करता हआ रहता था । किसी दिन रात्रि के पिछले पहर में कुटुम्ब-जागरणा करते हुए अयंपुल आजीविकोपासक को यह विचार उत्पन्न हुआ कि-'हल्ला' नामक कीट विशेष का आकार कैसा होता है । फिर अयंपुल आजीविकोपासक को विचार उत्पन्न हुआ कि 'मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक
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