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भगवती मूत्र-स. १५ आजीविकोपागक अयंगुल
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महासुख वाले दो देव प्रकट होते हैं। यथा-पूर्णभद्र और माणिभद्र । वे देव शीतल और गीले हाथों से उसके शरीर के अवयवों का स्पर्श करते हैं। उन देवों की जो अनुमोदना करता है, वह आशीविष कर्म करता है और जो उन देवों की अनुमोदना नहीं करता, उसके स्वयं के शरीर में अग्निकाय उत्पन्न हो जाती है। वह अग्निकाय अपने तेज द्वारा उसके शरीर को जलाती है। तत्पश्चात् वह सिद्ध हो जाता है यावत् समस्त दुःखों का अंत करता है। वह शुद्ध-पानक कहलाता है।
विवेचन-गोशालक ने मद्यपान तथा आम का चूसने और मिट्टी मिश्रित शीतल जल में अपने गैर को मिनन आदि रूप अपने पापों को छिपाने के लिये पानक और भपानक आदि की मन मे कल्पना करके प्ररूपणा की है।
आजीविकोपासक अयंपुल
३०-तत्थ णं सावत्थीए णयरीए अयंपुले णामं आजीविओ. वासए परिवमड़, अड्ढे जाव अपरिभूए, जहा हालाहला, जाव आजीवियसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तएणं तस्स अयं. पुलस्स आजीविओवासगस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयास कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अन्झथिए जाव समुप्पजित्या-'किसंठिया हल्ला पण्णत्ता' ? तएणं तस्स अयं. पुलम्स आजीविओवासगस्स दोच्चं पि अयमेयारूवे अन्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु.ममं धम्मायरिए, धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी इहेव
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