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भगवती सूत्र - श. १५ गोशालक की तेज-शक्ति और दाम्भिक चेष्टा
महावीर स्वामी ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को बुला कर कहा - हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरा वध करने के लिये अपने शरीर में से जो तेजोलेश्या निकाली थी, वह निम्न लिखित सोलह देशों का घात करने में, वध करने में, उच्छेदन करने में और भस्म करने में समर्थ थी । यथा-१ अंग, २ बंग, ३ मगध, ४ मलय, ५ मालव, ६ अच्छ, ७ वत्स, ८ कौत्स ९ पाट, १० लाट, ११ वज्र, १२ मौली, १३ काशी, १४ कौशल, १५ अबाध और १६ संभुक्तर ।
जं पि य अज्जो ! गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंकारास अंचकूण गहत्थगए, मज्जपाणं पियमाणे, अभिक्खणं जाव अंजलिकम्मं करेमाणे विहरह, तस्स वि य णं वज्जस्स पच्छादट्टयाए इमाई अट्ट चरिमाई पण्णवे । तं जहा - १ चरिने पाणे २ चरिमे गेये ३ चरिमे णट्टे ४ चरिमे अंजलिकम्मे ५ चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे ६ चरिमे सेयणए गंधहत्थी ७ चरिमे महासिलाकंटए संगामे ८ अहं च णं इमीसे ओसप्पिणीए चवीसाए तित्थयराणं चरिमे तित्थयरे सिज्झिस्सं जाव अंतं करेस्सं ति । जं पिय अज्जो ! गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टीयापाणपणं आयंचणिउदपणं गायाइं परिसिंचमाणे विहरड़, तस्स विय णं वज्रस्स पच्छादण्डयाए इमाई चत्तारि पाणगाईं चत्तारि अपाणगाई पण्णवे ।
कठिन शब्दार्थ-आयंचणिउद एणं- कुम्भकार के बर्तन में रहा हुआ मिट्टी मिश्रित जल, वज्जस्स पच्छादणट्टयाए दोपों को ढकने के लिए |
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