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________________ भगवती सूत्र-श. १५. गोगावे का तज-गक्ति और दाम्भिक चेष्टा २४४५ हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक, हालाहला कुम्भारिन को दूकान में, आम्रफल हाथ में ग्रहण कर के मद्यपान करता हुआ यावत बारम्बार अंजलिकर्म करता हुआ विचरता है। वह अपने दोषों को ढकने के लिये इन आठ 'चरम' वस्तुओं की प्ररूपणा करता है। यथा-१ चरम पान, २ चरम गान, ३ चरम नाट्य, ४ चरम अंजलिकर्म, ५ चरम पुष्कल-संवर्तक महामेघ, ६ चरम सेचनकगंधहस्ती ७ चरम महाशिला कण्टक संग्राम और ८ में (मंखलिपुत्र गोशालक) इस अवपिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों में से चरम तीर्थंकरपने सिद्ध होऊँगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करूंगा। "हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक मिट्टी के पात्र में रहे हुए मिट्टी मिश्रित शीतल पानी द्वारा अपने शरीर का सिंचन करता हुआ विचरता है । इस पाप को छिपाने के लिये चार प्रकार के पानक (पीने योग्य ) और चार प्रकार के अपानक (नहीं पीने योग्य, किन्तु शीतल और दाहोपशमन) को प्ररूपणा करता है । विवेचन-दाह-ज्वर के ताप से तप्त गोशालक, शीतल जल से अपने शरीर को सिंचन करने लगा और मद्यपान आदि भी करने लगा। अपने इन दोपों को छिपाने के लिये उसने आठ प्रकार के चरमों को प्ररूपणा का। 'ये फिर कभी नहीं होंगे'-इस दृष्टि से इसको चरम कहा है । इस आठ में से मदिरापान, गान, नाटय और अञ्जलिकर्म, ये चार तो स्वयं गोशालक से सम्बन्धित हैं। उसकी मान्यतानुसार वह निर्वाण चला जायगा, इसलिये इन्हें वह फिर नहीं करेगा । क्यों कि वह अपने को चरम (अन्तिम) जिन मानता है, तथा लोगों में यह बतलाने के लिये कि जलसिंचन आदि में दाहोपशम के लिये नहीं करता हूं, किन्तु जिन (तीर्थकर.). जब सोक्ष पाते हैं, तब उनके .ये. चार बातें अवश्य होती हैं । अतः इनके करने में कोई दोप नहीं है। __ पुष्कल संवर्तक आदि तीन बातों का कथन यहाँ प्रकरण में उपयोगी नहीं, तथापि चरम का समानता बतलाने के लिये, अपने दोषों को छिपाने के लिए, अपने को अतिशय ज्ञानी प्रकट करने के लिए तथा जन-चितरञ्जन के लिये इन्हें चरम रूप से कहा है, जिससे इनके साथ पूर्वोक्त चार बातों पर लोग सरलता मे श्रद्धा कर सकें। आठवें चरम में उसने अपने आपको चरम तीर्थकर बतलाया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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