________________
भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक की तेज-शक्ति और दाम्भिक चेष्टा
२४४३
स्वामी के समीप से और कोष्ठक उद्यान से निकल कर श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुंभारिन की दुकान में आया। इसके बाद हाथ में आम्रफल (आम की गुठली)लिया और मद्यपान करता हुआ, बारम्बार गाता हुआ, बारम्बार नाचता हुआ, बारंबार हालाहला कुम्भारिन को अजलि करता हुआ और मिट्टी के बर्तन में रहे हुए मिट्टी मिश्रित शोतल पानी से अपने शरीर को सिंचन करता हुआ विचरने लगा।
विवेचन-तेजोलेल्या जनित दाह के उपशम के लिये चूसने के निमित्त हाथ में आम्रफल (गुठली) लिया । नाचना, गाना आदि मद्यपान कृत विकार है।
गोशालक की तेज-शक्ति और दाम्भिक चेष्टा
२३-'अजो' ति ममणे भगवं महावीरे समणे णिग्गंथे आमं. तित्ता एवं वयासी-'जावइए णं अजो ! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं ममं वहाए सरीरगंसि तेये णिसट्टे, से णं अलाहि पजत्ते सोलसण्हं जणवयाणं, तं जहा-१ अंगाणं २ बंगाणं ३ मगहाणं ४ मलयाणं ५ मालवगाणं ६ अच्छाणं ७ वच्छाणं ८ कोच्छाणं ९ पाढाणं १० लाढाणं ११ वजाणं १२ मोलीणं १३ कासीणं १४ कोसलाणं १५ अवाहाणं १६ संभुतराणं घायाए, वहाए, उच्छायणयाए, भासीकरणयाए।
कठिन शब्दार्थ-उच्छायणयाए--उच्छेदन-नष्ट करने के लिये, भासीकरणयाए--- भस्म करने के लिए।
भावार्थ-२३-" हे आर्यो !" इस प्रकार सम्बोधन कर श्रमण भगवान्
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org