________________
२४४२
भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक की दुर्दशा
अमाहेमाणे, रुंदाई पलोएमाणे, दीहुण्हाई णीससमाणे, दाढियाए लोमाइं लुंचमाणे अवडं कंडूयमाणे, पुयलिं पप्फोडेमाणे, हत्थे विणिदुधुणमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमि कोट्टेमाणे, 'हा हा अहो ! हओ अहमस्सि त्ति कटु समणस्स भगवओ महावीरम्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ; पडिणिस्खमित्ता जेणेव सावत्थी णयरी, जेणेव हालाहलाए कुभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावर्णसि अंबकूणगहत्यगए, मजपाणगं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे, अभिक्खणं णचमाणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे, सीयलपणं मट्टियापाणएणं आयंचणिउदएणं गायाई परिसिंचमाणे विहरइ ।
___ कठिन शब्दार्थ-रुंदाई पलोएमाणे-दिशाओं में लम्बी दृष्टि फकता हुआ, अवडं-गर्दन के पीछे का भाग, पुलि-पुत-प्रदेश-वैठने के कूल्हे, कंड्यमाणे-ग्वजालता हुआ, हत्यविणिटुणमाणे-हाथों को हिलाता हुआ, होऽहमस्सि-में मारा गया, अंबकूणहत्थगए-आम्रफत हाथ में लेकर, मज्जमाणगं-मद्यपानक, अभिक्खणं-बार-बार, हव्वमागए-शीघ्र आया था, तमढें-वह अर्थ, असाहेमाणे-विना साधे, दोहुण्हाई-दीघ उष्ण । .
भावार्थ-२२-मंखलिपुत्र गोशालक जिस कार्य को सिद्ध करने के लिये आया था, वह सिद्ध नहीं कर सका, तब वह दिशाओं की ओर लम्बी दृष्टि फेंकता हुआ, दीर्घ और गरम-गरम निःश्वास छोड़ता हुआ, दाढ़ी के बालों को नोचता हुआ, गर्दन के पीछे के भाग को खुजालता हुआ, पुत-प्रदेश को प्रस्फोटित करता हुआ, हाथों को हिलाता हुआ और दोनों पैरों को भूमि पर पटकता हुआ-"हा हा !! अरे ! में मारा गया"-ऐसा विचार कर श्रमण भगवान् महावीर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org