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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक के अनेक स्थविर भगवान् के आश्रय में
यारित्ता अढेहि य हेऊहि य कारणेहि य जाव वागरणं करेंति ।
भावार्थ-२०-जब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने ऐसा कहा, तब श्रमण-निर्ग्रन्थों ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार किया और गोशालक के साथ धर्म सम्बन्धी प्रतिचोदना (उसके मत के प्रतिकूल वचन) प्रतिसारणा (उसके मत के प्रतिकूल अर्थ का स्मरण कराना) तथा प्रत्युपचार किया और अर्थ हेतु तथा कारण मादि द्वारा उसे निरुत्तर किया।
गोशालक के अनेक स्थविर भगवान् के आश्रय में
२१-तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहिं णिग्गंथेहिं धग्मियाए पडिचोयणाए पडिचोइज्जमाणे जाव णिप्पटुपसिणवागरणे कीरमाणे आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे णो संचाएइ समणाणं णिग्गं. थाणं सरीरगस्स किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएत्तए, छविच्छेयं वा करेत्तए । तएणं ते आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं समणेहिं णिग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएजमाणं, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारिजमाणं, धम्मिएणं पडोयारेण य पडोयारेजमाणं, अद्वेहि य हेहि य जाव करेमाणं, आसुरुत्तं जाव : मिसि. मिसेमाणं समणाणं णिग्गंथाणं सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वावाहं वा छविच्छेयं वा अकरेमाणं पासंति, पासित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमंति, आयाए अवक्क
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