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भगवती सूत्र-श. १५ धर्म-चर्चा में गोशालक की पराजय
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और अवकर (कचरा) राशि, अग्नि से दग्ध, अग्नि से नष्ट एवं परिणामान्तर को प्राप्त होती है और जिसका तेज हत हो गया हो, तेज चला गया हो, नष्ट हो गया हो, भ्रष्ट हो गया हो, लुप्त हो गया हो यावत् उसो प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरे वध के लिये अपने शरीर से तेजोलेश्या बाहर निकाली थी, अब उसका तेज हत (नष्ट) हो गया है यावत् उसका तेज नष्ट, विनष्ट, भ्रष्ट हो गया है । इसलिये है आर्यो ! अब तुम अपनी इच्छानुसार गोशालक के के साथ धर्म-चर्चा करो। धामिक प्रतिप्रेरणा, प्रतिसारणा आदि करो और अर्थ, हेतु, प्रश्न, व्याकरण और कारणों के द्वारा पूछे हुए प्रश्न का उत्तर न बन सके, इस प्रकार उसे निरुत्तर करो।
विवेचन- गोशालंक के साथ धार्मिक चर्चा और प्रश्नोत्तर आदि करने के लिये भगवान् ने पहले साधुओं को मना किया था, परन्तु अब गोशालक के तेजोलेश्या के प्रभाव मे रहित होने के बाद भगवान् ने धर्म-चर्चा करने की छूट दी । इस का कारण यह है कि चर्चा सुन कर गोशालक के अनुयाया अनेक स्थविर साधु, उसके मत का त्याग कर सत्य मार्ग को अंगीकार कर सकें।
धर्म-चर्चा में गोशालक की पराजय
२०-तएणं ते समणा णिग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडि. चोएंति, ध० २ पडिचोएत्ता धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेंति, ध० २ पडिसारेत्ता धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेति, ध० २ पडो
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