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भगवती सूत्र-श. १५ धर्म-चर्चा का आदेश
धर्म-चर्चा का आदेश
'अजो' ति समणे भगवं महावीरे समणे णिग्गंथे आमंतित्ता एवं वयासी-'अजो' ! से जहाणामए तणरासी इ वा कट्टरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगणिझामिए अगणिझू सिए अगणिपरिणामिए हयतेए गयतेए णट्ठतेए भट्टतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाव एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते मम वहाए सरीरगंसि तेयं णिसिरेत्ता हयतेए गयतेए . जाव विण?तेए जाए, तं ;देणं अजो ! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मि० २ पडिचोएत्ता धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मि० २ पडि. सारित्ता धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, धम्मि० २ पडोयारेत्ता अद्वेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य णिप्पट्ठः पसिणवागरणं करेह ।
: कठिन शब्दार्थ-भगणिझामिए-अग्नि से किचित् जलाया हुआ, अगणिसिए-अग्नि -से नष्ट किया हुआ, छंदेणं-अपनी इच्छानुसार-यथेष्ट, हयतेए-जिसका तेज हत हो गया, गयतेए-गत तेज, पडिचोयणाए-प्रति प्रेरणा-उपदेश, पडिसारणा-धर्म का स्मरण कराना, णिप्पटुपसिणवागरणेण-प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकने योग्य बना दो।
भावार्थ-तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को सम्बोधित कर कहा-“हे आर्यो ! जिस प्रकार तण-राशि, काष्ठ-राशि, पत्र. राशि, त्वचा (छाल) राशि, तुष-राशि, भूसा-राशि, गोमय (गोबर) राशि,
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