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भगवती सूत्र-श. १५ जन-चर्चा
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गन्धहस्ती के समान विचरूंगा । परन्तु हे गोशालक ! तू स्वयं अपनी ही तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त हो कर सात रात्रि के अन्त में पित्त-ज्वर से पीड़ित होकर, छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर जायगा ।"
- जन-चर्चा
१९-तएणं मावत्थीए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणों अण्णमण्णस्स एवमाइक्वइ, जाव एवं परूवेइ-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! सावत्थीए णयरीए बहिया कोट्टए चेइए दुवे जिणा संलवंति, एगे वयह-तुमं पुट्विं कालं करिस्ससि. एगे वयई तुम पुब्बि कालं करिस्ससि, तत्थ णं के पुण सम्मावाई के पुण मिच्छा. वाई ? तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से वयइ-समणे भगवं महा. . वीरे सम्मावाई, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छावाई ।
काठन शम्वार्थ-अहप्पहाणे जणे--यथा-प्रधान मनुष्य ।
भावार्थ-१९-श्रावस्ती नगरी में शृंगाटक यावत् राजमार्ग में बहुत से मनुष्य कहने लगे यावत् प्ररूपणा करने लगे-“हे देवानुप्रियो ! श्रावस्ती नगरी के बाहर, कोष्ठक उद्यान में दो जिन परस्पर संलाप करते हैं, उनमें से एक इस प्रकार कहता है कि तू पहले काल कर जायगा' और दूसरा उसे कहता है कि 'तू पहले मर जायगा।' इन दोनों मेंन मालम कौन सत्यवादी है और कौन मिथ्यावादी है ।" उन लोगों में से जो प्रधान मनुष्य हैं, वे कहते हैं कि “श्रमण भगवान महावीर स्वामी सत्यवादी हैं और मंखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी है।"
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