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भगवती सूत्र---. १५ आक्रमणकारी स्वय आदत
नहीं हुई। पन्तु वह गमनागमन करने लगी, फिर उसने प्रदक्षिणा दी और आकाश में ऊंची उछली। फिर आकाश से नीचे गिरती हुई वह तेजो-लेश्या गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हो गई और उसे जलाने लगी।
तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते सएणं तेएणं अण्णाइट्टे समाणे समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-'तुमं णं आउमो कासवा ! ममं तवेणं तेएणं अण्णाइटे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करैस्समि। तएणं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-'णो खलु अहं गोसाला तव तवेणं तेएणं अण्णाइट्टे समाणे अंतो छण्हं जाव कालं करिस्सामि, अहं णं अण्णाई सोलस वासाई जिणे । सुहत्थी विहरिस्सामि, तुम णं गोसाला ! अप्पणा चेव सएणं तेएणं अण्णाइटे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे जाव मत्थे चेव कालं करिस्ससि ।
भावाथ-वह अपनी ही तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त हुआ। क्रुद्ध गोशालक ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से कहा-"आयुष्यमन् काश्यप ! मेरी तपोजन्य तेजोलेश्या द्वारा पराभव को प्राप्त हो कर, तू पित्त-ज्वर युक्त शरीर वाला होगा और छह मास के अन्त में दाह की पीड़ा से छद्मस्थ अवस्था में ही मर जायगा।" तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गोशालक से इस प्रकार कहा'हे गोशालक ! तेरी तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त होकर में छह मास के अन्त में यावत् काल नहीं करूंगा, परन्तु दूसरे सोलह वर्ष तक जिनपने
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