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________________ भगवतो सूत्र - श. १५ सुनक्षत्र मुनिका देहात्सग जो मनुष्य तथारूप के श्रमण माहण के पास एक भी आर्य ( निर्दोष) धार्मिक सुवचन सुनता है, वह उनको वन्दन- नमस्कार करता है, यावत् उन्हें कल्याणकारी, मंगलकारी, देवरूप, ज्ञानस्वरूप मान कर पर्युपासना करता है, तो हे गोशालक ! तेरे लिये तो कहना ही क्या ? भगवान् ने तुझे दीक्षा दी, तुझे शिष्य रूप से स्वीकार किया और तुझे मुण्डित किया, भगवान् ने तुझे व्रत समाचारी सिखाई, भगवान् ने तुझे (तेजोलेश्या आदि विषयक) उपदेश देकर शिक्षित किया और भगवान् ने तुझे बहुश्रुत बनाया, इतने पर भी तू भगवान् के साथ अनापना कर रहा है ? हे गोशालक ! तू ऐसा मत कर । हे गोशालक ! तू ऐसा करने के योग्य नहीं है । तू वही मंखलिपुत्र गोशालक है, दूसरा नहीं । तेरी वही प्रकृति है ।" सर्वानुभूति अनगार की बात सुन कर गोशालक अत्यन्त कुपित हुआ और अपने तप-तेज के द्वारा एक ही प्रहार में कूटाघात की तरह सर्वानुभूति अनगार को जला कर भस्म कर दिया। उन्हें भस्म कर के गोशालक फिर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को अनेक प्रकार के आक्रोश वचनों से बकने लगा, यावत् 'आज मेरे से तुम्हें सुख (शुभ) होने वाला नहीं है ।' २४३२ विवेचन - यद्यपि गोशालक के सामने बोलने की भगवान् ने मनाई की थी, तथापि अपने धर्माचार्य के अनुराग से सर्वानुभूति अनगार में नहीं रहा गया और उन्होंने गोशालक से उचित बात कही । जिस पर कुपित होकर उसने उनको जला कर भस्म कर दिया । सुनक्षत्र मुनि का देहोत्सर्ग १७- तेणं कालणं तेणं समर्पणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी कोसलजाणवर सुणक्खत्ते णामं अणगारे पगड़भदए, जाव विणीए, धम्मायरियाणुरागेणं जहा सव्वाणुभूई तहेव जाव सच्चेव ते सा छाया णो अण्णा । तरणं से गोसाले मंखलिपुत्ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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