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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक का आगमन और दाम्भिक प्रलाप
तत्थ णं जे से छटे पउट्टपरिहारे से णं वेसालीए णयरीए बहिया कोंडियायणंसि चेइयंसि भारदाइयस्स सरीरं विप्पजहामि, भा० २जहित्ता अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अ० २प्पविसित्ता सत्तरस्स वासाई छर्ल्ड पउट्टपरिहारं परिहरामि ।
__ भावार्थ-इनमें से जो प्रथम परिवृत्त-परिहार (शरीरान्तर प्रवेश) राजगृह नगर के बाहर मण्डिकुक्षि नामक उद्यान में, कुण्डियायन गोत्रीय उदायन के शरीर का त्याग कर के ऐणेयक के शरीर में प्रवेश किया, प्रवेश कर के बाईस वर्ष तक प्रथम शरीरान्तर में परिवर्तन किया। दूसरे परिवत्त-परिहार में उदण्डपुर नगर के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान में ऐणेयक के शरीर का त्याग कर मल्लराम के शरीर में प्रवेश किया और इक्कीस वर्ष तक दूसरे परिवत्त-परिहार का उपभोग किया। तीसरा परिवृत्त-परिहार चम्पा नगरी के बाहर अगमन्दिर नामक उद्यान में, मल्लराम के शरीर का त्याग कर के मण्डिक के शरीर में प्रवेश किया और वहां बीस वर्ष तक तीसरे परिवृत्त-परिहार का उपभोग किया। चौथा परिवृत्तपरिहार वाराणसी नगरी के बाहर काम-महावन नामक उद्यान में मण्डिक के शरीर का त्याग कर, रोहक के शरीर में प्रवेश किया और उन्नीस वर्ष तक चौथे परिवत्त-परिहार का उपभोग किया। पांचवां परिवत्त-परिहार आलभिका नगरी के बाहर प्राप्तकाल नामक उद्यान में रोहक के शरीर का त्याग कर के भारद्वाज के शरीर में प्रवेश किया और अठारह वर्ष तक पांचवें परिवृत्त-परिहार का उपभोग किया। छठा परिवृत्त-परिहार वैशाली नगरी के बाहर कुण्डियायन नामक उद्यान में भारद्वाज के शरीर का त्याग कर के गौतम पुत्र-अर्जुन के शरीर में प्रवेश किया और वहाँ सतरह वर्ष तक छठे परिवृत्त-परिहार का उपभोग किया।
तत्थ गंजे से सत्तमे पउट्टपरिहारे मे णं इद्देव सावत्थीए णयरीए
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