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भगवती मूत्र-श. १५ गोगालक का आगमन और दाम्भिक प्रलाप . २४:१
चौड़ाई में आधा योजन है और गहराई में पांच सौ धनुष है । इस प्रकार गंगा के प्रमाण वाली सात गंगा नदियाँ मिल कर एक महागंगा होती है। सात महागंगा मिल कर एक सादीन गंगा होती है। सात सादीन गंगा मिल कर एक मत्युगंगा होती है। सात मृत्युगंगा मिल कर एक लोहित गंगा होती है । सात लोहित गंगा मिल कर एक अवन्ती गंगा होती है। सात अवन्ती गंगा मिल कर एक परमावती गंगा होती है। इस प्रकार पूर्वापर मिल कर एक लाख मत्तरह हजार छह सौ ऊनपचास गंगा नदियां होती हैं।
तासिं दुविहे उद्धारे पण्णत्ते, तं जहा-सुहमवोंदिकलेवरे चेव वायरवोंदिकलेवरे चेव । तत्थ णं जे मे सुहमयोंदिकलेवरे से ठप्पे । तत्थ णं जे से वायरवोदिकलेवरे तओ णं वाससए गए वाससए गए पगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावइएणं कालेणं से कोटे खीणे, ‘णीरए, पिल्लेवे, णिट्ठिए भवइ सेत्तं सरे सरप्पमाणे । एएणं सरप्पमाणेणं तिण्णि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे, चउरासीई महाकप्पसयसहस्साइं से एगे महामाणसे । अणंताओ संजूहाओ जीवे चयं चहत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजइ १ । से णं तत्थ दिबाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सण्णिगन्भे जीवे पञ्चायाइ १ । से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता मझिल्ले माणसे मंजूहे देवे उववजइ २ । से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव विहरित्ता ताओ देवलोयाओ
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