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भगवती सूत्र-श १५ गोशालक का आगमन और दाम्भिक प्रलाप
धर्मान्तेवासी था, वह तो शुक्ल (पवित्र) और शुक्लाभिजात (पवित्र परिणाम वाला) होकर काल के समय काल करके किसी देवलोक में देवपने उत्पन्न हुआ है। मैं तो कौंडिन्यायन गोत्रीय उदायी हूँ। मैंने गौतम-पुत्र अर्जुन के शरीर का त्याग करके मंखलिपुत्र गोशालक के शरीर में प्रवेश कर, यह सातवां परिवृत्तपरिहार (शरीरान्तर प्रवेश) किया है । हे आयुष्यमन् काश्यप ! हमारे सिद्धांत के अनुसार जो मोक्ष में गये हैं, जाते हैं और जावेंगे, वे सभी चौरासी लाख महाकल्प (काल विशेष) सात देव भव, सात संयूथनिकाय, सात संज्ञी गर्भ (मनुष्य गर्भावात), सात परिवृत्त परिहार (शरीरान्तर प्रवेश) और पांच लाख साठ हजार छह सौ तीन कर्मों के भेदों को अनुक्रम से क्षय करने के बाद सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाण प्राप्त करते है
और समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। भूतकाल में ऐसा किया है, वर्तमान में करते हैं और भविष्य में करेंगे।
से जहा वा गंगा महाणयी जओ पबूढा, जहिं वा पज्जुत्थिया, एस णं अद्धा पंचजोयणसयाई आयामेणं, अद्धजोयणं विवखंभेणं, पंच धणुसयाई उव्वेहेणं, एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा, सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा, सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मच्चुगंगा, सत्त मच्चुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा, सत्त लोहियगंगाओ, सा एगा आवतीगंगा, सत्त आवती. गंगाओ सा एगा परमावती, एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सत्तर सहस्सा छच्च गुणपण्णं गंगासया भवंतीति मक्खाया। . भावार्थ-जिस प्रकार गंगा महानदी जहां से निकलती है और जहाँ समाप्त होती है, उस गंगा का अद्धा (मार्ग) लम्बाई में पांच सौ योजन है,
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