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भगवती मूत्र-स. १३ उ. १ नरकावासों की संख्या विस्तारादि
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विवेचन-रत्नप्रभा नवी में एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? कितने उद्वतंते हैं ? इसका परिमाण पूर्व मूथों में बनलाया गया है । इम मूत्र में यह बताया गया हैं कि वहाँ मत्ता में. कितने नै रयिक विद्यमान रहते हैं ?
जिन नरयिका को उत्पन्न हुए अभी एक ही ममय हुआ है, उन्हें 'अनन्तरोपपत्रक कहते हैं और जिनको उत्पन्न हुए दो, तीन आदि समय हो गये हैं, उन्हें 'परम्परोपपन्नक' कहते हैं। किसी एक उत्पत्ति क्षेत्र में प्रथम समय में रहे हुए जीवों को 'अनन्त रावगाढ़ 'कहते है ओर उत्पत्ति क्षेत्र में द्वितीयादि समय म रहे हुए जीवों को 'परम्परावगाढ़' कहते है।
__ आहार ग्रहण करने में जिन्हें प्रथम ममय हुआ हैं. उन्हें 'अनन्तराहारक' और जिन्हें द्वितीयादि ममय हुआ है, उन्हें परम्पराहारक' कहते हैं।
जिन जीवा को पर्याप्त हुए प्रथम समय हो हआ है. उन्हें 'अनन्तर पर्याप्तक' और जिनको पर्याप्त हुए द्वितीयादि समय हो गये हैं. उन्हें “परम्पर पर्याप्तक' कहते हैं।
जिन जीव! का वही अन्तिम नारक-भव है अथवा जो नारक-भव के अन्तिम समय म रहे हुए हैं, उन्हें 'चरम नरयिक कहते हैं और इनसे विपरीत को 'अचरम' नैरचित कहते हैं ।
जो असशी तिर्यच मर कर नरक में नैरंयिकपने उत्पन्न होते हैं, वे अपर्याप्त अवस्था में कुछ काल तक असंजी होते हैं । ऐसे नैरयिक अल्प होते हैं । इसलिए कहा गया है कि-रत्नप्रभा पृथ्वी में असंनी कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते।
___ मानकषायोपयुक्त, मायाकषायोपयुक्त, लोभकषायोपयुक्त और नोइन्द्रियोपयुक्त तथा अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाद. अनन्तराहारक और अनन्तर पर्याप्तक नैरयिक कभीकभी ही होते हैं, इसलिए कहा गया है कि ये कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। शेष नैरयिक जीव मदा बहुत होते हैं, इसलिए संख्यात' कहना चाहिए ।
७ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरयावाससयसहस्सेसु असंखेन्जवित्थडेसु एगसमएणं केवइया णेरइया उजवनंति, जाव केवइया अणागारोवउत्ता उववज्जति ?
७ उत्तर-गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरया
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