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________________ २१४६ भगवती सूत्र-श. १३ उ. १ नरकावासों की संख्या विस्तारादि हैं। २ कितने कापोतलेशी नैरयिक कहे गये हैं ? यावत् ३९ कितने अनाकारोपयोग वाले नरयिक कहे गये हैं ?१ कितने अनन्तरोपपन्नक २ कितने परंपरोपपन्नक ३ कितने अनन्तरावगाढ़ ४ कितने परम्परावगाढ़ ५ कितने अनन्तराहारक ६ कितने परम्पराहारक ७ कितने अनन्तरपर्याप्तक ८ कितने परम्परपर्याप्तक ९ कितने चरम और १० कितने अचरम कहे गये हैं ? ६ उत्तर-हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से जो नरकावास संख्यात योजन के विस्तार वाले हैं, उनमें संख्यात नरयिक जीव कहे गये हैं। संख्यात कापोतलेशी जीव कहे गये हैं। इसी प्रकार यावत् संख्यात संज्ञी जीव कहे गये हैं। असंज्ञी जीव कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते है, तो जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं । भवसिद्धिक जीव संख्यात कहे गये हैं। इसी प्रकार यावत् परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक संख्यात कहे गये हैं। स्त्री-वेदी और पुरुष-वेदी नहीं होते । नपुंसक-वेदी संख्यात होते हैं। इसी प्रकार क्रोध-कषायी भी संख्यात होते हैं । मान-कषायी नैरयिक असंज्ञी नैरयिकों के समान कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। इसी प्रकार माया-कषायी और लोभ-कषायी नैरयिकों के विषय में भी कहना चाहिये । श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय उपयोग वाले नैरयिक संख्यात होते हैं। नोइन्द्रिय के उपयोग वाले नरयिक असंज्ञी नैरयिक जीवों की तरह कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । मन-योगी यावत् अनाकारोपयोग वाले नैरयिक संख्यात होते हैं। अनन्तरोपपन्नक नैरयिक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो असंज्ञी जीवों के समान एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं। परम्परोपपत्रक नरयिक संख्यात होते हैं। जिस प्रकार अनन्तरोपपन्नक का कथन किया गया, उसी प्रकार अनन्तरावगाढ़, अनन्तराहारक, अनन्तर-पर्याप्तक का कथन करना चाहिये। जिस प्रकार परम्परोपपन्नक का कथन किया गया है, उसी प्रकार परंपरावगाढ़, परंपराहारक, परंपरपर्याप्तक चरम और अचरम का कथन करना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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