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: भगवती सूत्र:-.: उनरकावासों की संख्या विस्तारादि
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१० केवइया अचरिमा पण्णत्ता ? ..
६ उत्तर-गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीमाए गिरयावामसयसहस्मेसु मखेजवित्थडेमु णरएमु संखेजा णेरड्या पण्णत्ता, संखेजा काउलेस्सा पण्णत्ता, एवं जाव संखज्जा मण्णी पण्णत्ता । अमण्णी सिय अस्थि, सिय णत्थि; जड़ अस्थि जहाणेणं एवको वा दो वा तिणि वा, उक्कोमेणं संखेजा पण्णत्ता । संखेजा भव. सिद्धिया पण्णत्ता, एवं जाव संग्वेजा परिग्गहमण्णोवउत्ता पण्णत्ता, इत्थिवेयगा णत्थि. पुरिसवेयगा णस्थि, संखेजा णपुंसगवेयगा पण्णत्ता, एवं कोहकसाई वि। माणकसाई जहा असण्णी, एवं जाव लोभकसाई । संखेजा सोइंदियोवउत्ता पण्णत्ता, एवं जाव फासिंदियोवउत्ता । णोइंदियोवउत्ता जहा असण्णी। संखेज्जा मण. जोगी पण्णत्ता, एवं जाव अणागारोवउत्ता । अणंतरोववण्णगा सिय अस्थि, सिय णत्थि; जइ अस्थि जहा असण्णी । संखेजा परंपरोक्वण्णगा पण्णत्ता । एवं जहा अणंतरोववण्णगा तहा अणं. तरोवगाढगा, अणंतराहारगा, अणंतरपज्जत्तगा। परंपरोवगाढगा, जाव अचरिमा जहा परंपरोक्वण्णगा ।
कठिन शब्दार्थ-सिय अत्थि सिय नस्थि-कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते । ___ भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों में कितने नैरयिक जीव कहे गये
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