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________________ . २१४८ . यवती सूत्र-श. १३.उ.-१ नरकावासों की संख्या विस्तारादि विवेचन-पूर्व सूत्र में रत्नप्रभा पश्वी में नैरयिक जीवों की उत्पत्ति का कथन किया गया, अब इस सूत्र में उनकी उद्वर्तना (मरण) का कथन किया गया है । उपर्युक्न :९ बोलों में से जिनका कथन और योजना सुगम है, उनका विवेचन यहां नहीं किया जायगा, वह स्वयं घटित कर लेना चाहिये। . . संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों में संख्यात नैरयिक ही समा सकते हैं। इसलिये उत्कृष्ट संख्यात ही उद्वर्तते हैं। उद्वर्तना परभव के प्रथम समय में होती है। नैरयिक जीव असंजी जीवों में उत्पन्न नहीं होते, अतएव वे अमंजी नहीं उद्वर्तते । यही बात चूणि में भी कही है । यथा - असणिणो य विमंगिणो य, उटवटणाइ वज्जेज्जा। दोसु विय चक्खुदंसणी, मणवइ तह इंदियाई वा ।। अर्थात्-असंजी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, मन योगी, वचन-योगी और धोत्रन्द्रियार पांचों इन्द्रियों के उपयोग वाले जीव नहीं उद्वर्तते । अतः नरक से इनकी उद्वर्तना का निषेध किया गया है । शेष पदों की व्याख्या और विवेचन उत्पाद के समान समझना चाहिये। ६ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरयावाससयसहस्से मखेजवित्थडेसु णरएसु केवइया णेरइया पण्णत्ता केवड्या काउलेस्सा, जाव केवइया अणागारोवउत्ता पण्णता ? १ केवइया अणंतरोववण्णगा पण्णत्ता ? २ केवइया परंपरोक्वण्णगा पण्णत्ता ? ३ केवइया अणंतरोगाढा पण्णत्ता ? ४ केवइया परं. परोवगाढा पण्णत्ता ? ५ केवड्या अणंतराहारा पण्णत्ता ? ६ केव. इया परंपराहारा पण्णत्ता ? ७ केवइया अणंतरपजत्ता पण्णत्ता ? ८ केवड्या परंपरपज्जत्ता पण्णत्ता ? ९ केवइया चरिमा पण्णत्ता ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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