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भगवती सूत्र - १५ व्यापारियों की दुर्दशा का दृष्टांत
देखकर वे वणिक् प्रसन्न और प्रियो ! इस भयंकर अटवी में चार सुन्दर शिखर देख रहे हैं, इसलिये हे देवानुप्रियो ! इस बल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ना श्रेयस्कर है, जिससे हमें बहुत-सा उत्तम पानी मिलेगा'. ऐसा विचार कर उन व्यापारियों ने वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ा, जिससे उनको स्वच्छ, हितकारक, उत्तम, हल्का और स्फटिक के वर्ण जैसा बहुत पानी प्राप्त हुआ । वे सभी प्रसन्न और सन्तुष्ट हुए । उन व्यापारियों ने पानी पिया, अपने बैलों आदि वाहनों को पिलाया और पानी के बर्तन भर लिये ।
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सन्तुष्ट हुए और परस्पर कहने लगे- 'हे देवानुपानी की तपास करते हुए अपन वल्मीक के ये
भायणाई भरेता दोच्च पि अण्णमण्णं एवं वयासी - 'एवं खलु देवाणुपिया ! अम्हेहिं इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिण्णाए ओराले उदगरयणे अरसाइए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स दोच्चं पिवप्पं भिंदित्तए; अवियाई एत्थ ओरालं सुवण्णरयणं अस्साएरसामो' । तरणं ते वणिया अण्ण मण्णस्स अंतियं एयमहं पडिसुर्णेति, अण्णमण्णस्स अतियं एयमहं पडणेत्ता तस्स वम्पीयरस दोच्चं पिवप्पं भिंदंति, ते णं तत्थ अच्छं जच्च तावणिजं महत्थं महग्घं महरिहं ओरालं सुवण्णरयणं अस्साएंति । तएणं ते वणिया हट्टतुटु भायणाई भरेंति पवहणाई भरेति ।
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कठिन शब्दार्थ -- महग्घं -- महामूल्य |
भावार्थ-तत् पश्चात् उन्होंने परस्पर विचार किया -- 'हे देवानुप्रियों ! प्रथम शिखर को तोड़ने से अपने को बहुत-सा उत्तम पानी प्राप्त हुआ है, अब
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