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________________ २४०८ भगवती सूत्र-स. १५ व्यापारियों की दुर्दशा का दृष्टांत हमें दूसरा शिखर तोड़ना श्रेयस्कर है, जिससे हमें पर्याप्त उत्तम स्वर्ण प्राप्त होगा'-ऐसा विचार कर उन्होंने वल्मीक के दूसरे शिखर को तोड़ा। उसमें से उन्हें स्वच्छ, उत्तम, ताप को सहन करने योग्य महाअर्थवाला और महामूल्य वाला पर्याप्त स्वर्ण मिला। स्वर्ण प्राप्त करने से प्रसन्न और सन्तुष्ट बने हुए उन व्यापारियों ने अपने पात्र भर लिये और वाहनों (गाड़ियों) को भी भर लिया। ___ भरित्ता तच्चं पि अण्णमण्णं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिण्णाए ओगले उदगरयणे आसाइए, दोच्चाए वप्पाए भिण्णाए ओराले सुवण्णरयणे आसाइए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पं भिंदित्तए । अवियाई एत्थं ओरालं मणिरयणं अस्साएस्सामो' । तएणं ते वणिया अण्णमण्णस्स अतियं एयमढें पडिंसुणेति, अण्ण० २-सुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पं भिंदंति । । ते णं तत्थ विमल णिम्मलं णित्तलं णिकलं महत्थं महग्धं महरिह ओरालं मणिरयणं आसाएंति । तएणं ते वणिया हट्ठतुटु० भाय. णाई भति, भा० भरित्ता पवहणाई भरेंति, भरित्ता चउत्थं पि अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इम्मस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिण्णाए ओराले उदगरयणे आसाइए, दोचाए वप्पाए भिण्णाए ओराले सुवण्णरयणे आसाइए, तच्चाए वप्पाए भिण्णाए ओराले मणिरयणे आसाइए । ____कठिन शब्दार्थ-णिक्कलं-निष्कल (दोष रहित) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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