________________
२३९०
भगवती सूत्र-श. १५ तेजोलेश्या के प्रहार से गोशालक की रक्षा
लिए ये मिथ्यावादी होवें'-ऐसा सोच कर, गोशालक मेरे पास से धीरे-धीरे पीछे खिसका और तिल के पौधे के निकट आकर उसे मिट्टी सहित मूल से उखाड़ कर एक ओर फेंक दिया और मेरे निकट आकर साथ हो गया। पौधा उखाड़ने के बाद तत्काल आकाश में दिव्य बादल हुए और गर्जना करने लगे, बिजली चमकने लगी और अधिक पानी और कीचड़ नहीं हो, इस प्रकार थोड़े पानी और छोटी बन्दों वाली, रज एवं धल को शान्त करने वाली दिव्य वष्टि हई, जिससे वह तिल का पौधा वहीं स्थिर हो गया, विशेष स्थिर हो गया और बद्ध-मूल होकर वहीं प्रतिष्ठित हो गया। वे सात तिल-पुष्प के जीव मर कर .. उसी तिल के पौधे को एक फली में, सात तिल रूप में उत्पन्न हुए।
विवेचन-आगम की भाषा में मार्गशीर्ष और पौष-इन दो महीनों को 'शरद ऋतु' कहते हैं । 'प्रथम शरद्-काल समय' का अर्थ है-'मार्गशीर्ष मास' कोई आश्विन और कार्तिक को शरद् ऋतु कहते हैं । किन्तु यहाँ ऐसा अर्थ करना असंगत है । क्योंकि ये दोनों मास चातुर्मास के अन्तर्गत हैं और चातुर्मास में भगवान् विहार नहीं करते।
यद्यपि भगवान् ने मौन रहने का अभिग्रह किया था, किन्तु एकादि प्रश्न का उत्तर देना उनके नियम विरुद्ध नहीं था, क्योंकि उनके याचनी आदि भाषा बोलना खुला था। इसीलिये गोशालक के तिल सम्बन्धी प्रश्न का भगवान् ने उत्तर दिया। .
- वायु के द्वारा उड़कर आकाश में छाई हुई धूल के कण 'रज' कहलाते है और भूमिस्थित धूल के कण 'रेणु' कहलाते हैं ।
तेजोलेश्या के प्रहार से गोशालक की रक्षा
६-तएणं अहं गोयमा ! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धि जेणेव कुम्मग्गामे+ णयरे तेणेव उवागच्छामि, तएणं तस्स कुम्मग्गामस्स णयरस्स वहिया वेसियायणे णामं वालतवस्सी छटुंछट्टेणं अणिविख
+ "कुडग्गाम" पाठ भी अन्य प्रतियों में है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org