________________
भगवती सूत्र-श. १५ तेजोलेश्या के प्रहार से गागालक की रक्षा
तेणं. तबोकम्मेणं उइदं वाहाओ पगिझिय पगिझिय सूराभिमुहे आयावणभूमिए आयावेमाणे विहरइ, आइचतेयतवियाओ य से छप्पईओ सवओ समंता अभिणिम्सवंति पाण-भूय जीव सत्त-दयट्टः याए च णं पडियाओ पडियाओ तत्थेव भुजो भुजो पच्चोरुहेइ ।
कठिन शब्दार्थ-सद्धि-साथ, पगिज्झिय-रख कर, आयावणभूमिए-आतापना भूमि में, आइच्चतेयवियाओ-मूर्य के नाप स नपी हुई, छप्पईमो-षट्पदी (यकाएँ), पडियाओ. गिरी हुई।
__भावार्थ ६-हे गौतम ! इसके बाद मैं गोशालक के साथ कर्मग्राम नगर में आया। उस समय कूर्मग्राम के बाहर वैश्यायन नामक बाल-तपस्वी निरन्तर छठ-छठ तप करता था और दोनों हाय ऊँचे रख कर सूर्य के सम्मुख खड़ा हो, आतापना ले रहा था । सूर्य की गर्मों से तपी हुई जुएँ उसके सिर से नीचे गिर रही थी और वह तपस्वी, सर्व प्राण, भत, जीव और सत्त्व की दया के लिये, पड़ी हुई उन जूओं को उठा कर पुनः सिर पर रख रहा था।
तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं वालतवस्सि पासइ, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं सणियं पञ्चोसकइ, ममं० २ पच्चोसकित्ता जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता वेसियायणं बालतवस्सिं एवं वयासी-'किं भवं मुणी, मुणिए, उदाहु जूयासेज्जायरए' ? तएणं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमढें णो आढाइ, णो परियाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ । तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सिं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-'किं भवं मुणी मुणिए,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org