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भगवती सूत्र-श. १५ तिल का पौधा और गोशालय की कुचेष्टा
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पौधा निष्पन्न होगा । वह निष्पन्न होने से वञ्चित नहीं रहेगा । ये सात तिलपुष्प के जीव मर कर इसी तिल के पौधे की एक तिलफली में सात तिल के रूप में उत्पन्न होंगे।"
तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयमढें णो सद्दहइ, गो पत्तियइ, णो रोएइ, एयमढें असद्दहमाणे अपत्तिय. माणे, अगएमाणे मम पणिहाए 'अयं णं मिच्छावाइ भवउ' त्ति कट्ट ममं अंतियाओ सणियं सणियं पचोसकड़, पञ्चोसकित्ता जेणेव में तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता त तिलथंभगं सलेठ्ठयायं चेव उप्पाडेइ, उप्पाडित्ता एगते एडेह । तक्खणमेत्तं च णं गोयमा ! दिव्वे अभवद्दलए पाउ-भूए । तएणं से दिव्वे अभ. बद्दलए खिप्पामेव पतणतणाएइ, खिप्पामेव पविज्जुयाइ, खिप्पामेव णचोदगं गाइमट्टियं पविरलपफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सलिलोदगं वासं वासइ, जेणं से तिलथंभए आसत्थे पञ्चायाए, तत्थेव वद्धमूले, तत्थेव पइट्ठिए। ते य सत्त तिलपुष्फजीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तस्सेव तिलयंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पचायाया।
कठिन शब्दार्थ-तक्खणमेतं-तत्काल, पाउम्भूए-प्रकट हुए, पतणतणाएइ-जोर से गर्जन करने लगे, पविज्जयाइ-बिजली चमकने लगी, पविरलपफुसियं-थोड़े या हलके स्पर्श वाले, आसत्थे-स्थिर हुआ, पइटिए-प्रतिष्ठित हुआ।
मेरी बात पर गोशालक ने श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। 'मेरे
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