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________________ भगवती सूत्र - श. १५ शिष्यत्व ग्रहण तरणं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहुजणस्स अंतियं एम सोचा णिसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था - 'जारिसिया णं ममं धम्मायरियरस धम्मोवएसगरस समणस्स भगओ महावीरस्स इड्ढी जुई जसे बले वीरिए पुरिसकारपरक मे दधे पत्ते अभिसमण्णागए, णो खलु अत्थि तारिसिया णं अण्णस्स कस्सइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्ढी जुई जाव परकमे लदुधे पत्ते अभिसमण्णागए; तं णिस्संदिदुधं च णं एत्थ ममं धम्मायरि धम्मो एसए समणे भगवं महावीरे भविस्सइति कट्ट कोल्लागसणिवेसे सभितरवाहिरिए ममं सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करे ममं सव्वओ जाव करेमाणे कोल्लागर्साण्णवेसस्स वहिया पणियभूमीए मए सधि अभिसमण्णागए । तरणं से गोसाले मंखलिपुत्ते तु ममं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं जाव णमंसित्ता एवं वयासी- 'तुम्भे णं भंते! मम धम्मायरिया. अहं णं तुब्भं अंतेवासी ।' तरणं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमहं पडिसुणेमि । तएणं अहं गोयमा ! गोसालेणं मंखलिपुत्त्रेणं सद्धि पणियभूमीए छ्वासाई लाभ अलाभं सुखं दुक्खं सकारमसकारं पञ्चभवमाणे अणिच्च जागरियं विहरित्था | २३८६ भावार्थ - उस समय बहुत से मनुष्यों से यह बात सुन कर अवधारण कर, मंखलिपुत्र गोशालक को विचार उत्पन्न हुआ कि 'मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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