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भगवती सूत्र-श. १५ भगवान् से गोशालक का समागम
माता-पिता ने गोशाला में उत्पन्न होने के कारण बालक का गुणनिष्पन्न नाम 'गोशालक' दिया। गोशालक बाल्यावस्था से मुक्त हो, विज्ञान से परिणत मतिवाला होकर यौवन को प्राप्त हुआ। वह स्वयं स्वतन्त्र रूप से हाथ में चित्रपट लेकर मंखपने की वृत्ति से आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा।
विवेचन-गोशालक के पिता का नाम मंखलि था। उसका जाति ‘मंख' थी। इस जाति के लोग हाथ में चित्रपट लेकर भिक्षावृत्ति से आजीविका करते हैं। मंखलि भी इसी प्रकार आजीविका करता था।
भगवान से गोशालक का समागम
३-तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगपहिं एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । तएणं अहं गोयमा ! पढमं वासं अद्धमासं अदमासेणं खममाणे अट्ठियगामं णिस्साए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए, दोच्चं वासं मासंमासेणं खममाणे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगाम दूइजमाणे जेणेव रायगिहे णयरे, जेणेव णालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिहामि अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हिता तंतुवायसालाए एगदेससि वासावासं उवागए । तएणं अहं गोयमा ! पढमं मासखमणं उवसंपजित्ता णं विहरामि ।
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