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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक चरित्र
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प्रसन्न करने वाला था। उसमें गोबहुल नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह ऋद्धिसम्पन्न यावत् अपराभूत था । वह ऋगवेद आदि ब्राह्मण-शास्त्रों के विषय में निपुण था । उस. गोबहुल ब्राह्मण के एक गोशाला थी । एक दिन वह मंखलि नामक भिक्षाचर, अपनी गर्भवती भद्रा भार्या को साथ लेकर निकला। वह चित्रपट से अपनी आजीविका चलाता हुआ अनुक्रम से शरवण नामक सन्निवेश में आया और गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला के एक भाग में अपने भण्डोपकरण रखे । वह शरवण ग्राम में ऊँच, नोच और मध्यम कुलों के घर-समुदाय में भिक्षाचर्या के लिये फिरने लगा। वह अपने निवास के लिये किसी स्थान की खोज करने लगा। सभी ओर गवेषणा करने पर भी उसे कोई रहने योग्य स्थान नहीं मिला, तो उसने गोबल ब्राह्मण की गोशाला के एक भाग में ही वर्षाऋतु बिताने के लिये निवास किया । भद्रा ने नौ मास और साढ़े सात रात-दिन बीतने पर एक सुकुमाल हाथ-पैर वाले यावत् सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । ___तएणं तस्स दारगस्सः अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते जाव बारमाहे दिवसे अयमेयारूवं गोणं गुणणिप्फण्णं णामधेजं करेंति-"जम्हा णं अम्हं इमे दारए गोवहुलस्स माहणस्स गोसालाए जाए तं होउ णं अम्हें इमस्स दारगस्स णामधेनं 'गोसाले' 'गोसाले' ति । तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेनं करेंति 'गोसाले' ति। तएणं से गोसाले दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमेते जोव्वणगमणुप्पत्ते सयमेव पाडिएक्कं चित्तफलगं करेइ, सयमेव० २ करेत्ता चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
भावार्थ-ग्यारह दिन बीत जाने के बाद बारहवें दिन उस बालक के
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