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भगवती सूत्र-श. ५५ गोशान्टक चरित्र
सण्णिवेसे गोबहुले णामं माहणे परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए, रिउव्वेद० जाव सुपरिणिट्टिए यावि होत्था । तरस णं गोबहुलस्स, माहणस्स गोसाला यावि होत्था । तपणं से मंखली मंखे अण्णया कयाइ भद्दाए भारियाए गुम्विणीए सद्धि चित्तफलगहत्थगए मखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे जेणेव सरवणे सण्णिवेसे जेणेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता गोबहुलस्स माहणरस गोसालाए एगदेससि भंडणिक्खेवं करेइ, भंड० णिवखेवं करेत्ता सरवणे सण्णि-वेसे उच्च-णीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिवखायरियाए अडमाणे वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणे अण्णस्थ वसहिं अलभमाणे तस्सेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए । तएणं सा भद्दाभारिया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण-राइंदियाणं वीइनकंताणं सुकुमाल० जाव पडिरूवगं दारगं पयाया। ___कठिन शब्दार्थ - गुदिवजीए-गर्भवती, चित्तफलगहत्याए-चित्र-फलक ( चित्रांकित पटिया) हाथ में लेकर, मखतणे-मख लोपन से (चित्र बना कर आजीविका करने वाले भिक्षों की वृत्ति से)।
भावार्थ-२ उस काल उस समय में 'शरवण' नाम का ग्राम था। वह ऋद्धि सम्पन्न, उपद्रव रहित यावत् देवलोक समान प्रकाश वाला और मन को
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