________________
भगवतो मूत्र-ण. १५ गोगालक चरित्र
२३७३
यह कथन कैसा है ? हे भगवन् ! आरके श्रीमुख से मैं मंखलिपुत्र गोशालक का जन्म से लेकर अन्त तक वृत्तान्त सुनना चाहता हूँ।"
'गोयमाई' समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासीजण्णं गोयमा ! से वहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइवखइ ४ ‘एवं खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे विहरइ' तं णं मिच्छा । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु एयस्स गोसालम्स मंखलिपुत्तस्स मंसलिणामं मंखे पिया होत्था । तस्स णं मंलिस्स मंखस्स भदाणामं भारिया होत्था, सुकुमाल जाव पडिरूवा । तएणं सा भद्दा भारिया अण्णया कयाइ गुम्विणी यावि होत्था।
भावार्थ-(भगवान् ने फरमाया) 'हे गौतम' इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से कहा-हे गौतम ! बहुत-से मनुष्य जो परस्पर इस प्रकार कहते हैं कि 'मंखलिपुत्र गोशालक 'जिन' होकर और अपने आपको 'जिन' कहता हुआ यावत् 'जिन' शब्द का प्रकाश करता हुआ विचरता है'-यह बात मिथ्या है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि मंखलिपुत्र गोशालक का मंखलि नामक मंख जाति का पिता था। उस मंखलि नामक मंख के भद्रा नाम की भार्या थी । वह सुकुमाल हाथ-पाँव वाली यावत् प्रतिरूप (सुन्दर) थी। किसी समय वह भद्रा भार्या गर्भवती हई।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सरवणे णामं सण्णिवेसे होत्था, रिद्ध-स्थिमिय० जाव सण्णिभप्पगासे, पासाईए ४ । तत्थ णं सरवणे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org