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भगवती सूत्र-श. १५ गोयालक चरित्र
तएणं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोचा णिसम्म जाव जायसड्ढे जाव भत्तपाणं पडिदंसेड़, जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी"एवं खलु अहं भंते ! छटुं० तं चेव जाव जिणसदं पगासेमाणे विहरइ;” से कहमेयं भंते ! एवं ? तं इच्छामि णं भंते ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स उट्ठाणपरियाणियं परिकहियं ।
कठिन शब्दार्थ-उट्ठाण परियाणियं-उत्थान पारियानिक अर्थात् जन्म से लेकर पूरा जीवन वृत्तान्त ।
भावार्थ-२ इसके बाद श्रावस्ती नगरी में सिंघाड़े के आकार वाले त्रिक यावत् राजमार्गों में बहुत-से मनुष्य इस प्रकार कहने लगे यावत् प्ररूपणा करने लगे-" हे देवानुप्रियो ! यह मंखलिपुत्र गोशालक 'जिन' होकर अपने आपको 'जिन' कहता हुआ यावत् 'जिन' शब्द का प्रकाश करता हुआ विचरता है, तो इस प्रकार कैसे माना जाय ?"
___ उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहां पधारे, यावत् परिषद् धर्मोपदेश सुनकर चली गई । उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी, गौतम गोत्रीय इन्द्रभति अनगार यावत् छठछठ का पारणा करते थे, इत्यादि दूसरे शतक के पांचवें उद्देशक अनुसार यावत् गोचरी के लिए फिरते हुए गौतम स्वामी ने बहुत-से मनुष्यों के शब्द सुने । लोग इस प्रकार कहते थे कि-" हे देवानुप्रियो ! मंखलिपुत्र गोशालक 'जिन' होकर अपने-आपको 'जिन' कहता हुआ यावत् 'जिन' शब्द का प्रकाश करता हुआ विचरता है । उसको यह बात कैसे मानी जाय ?" लोगों से ऐसा सुनकर और अवधारण कर यावत् प्रश्न पूछने की श्रद्धा वाले हुए यावत् आहार-पानी भगवान् को दिखलाया, यावत् पर्युपासना करते हुए वे इस प्रकार बोले-"हे भगवन् ! मैं छठ के पारणे इत्यादि पूर्वोक्त कहना चाहिये यावत् गोशालक 'जिन' शब्द का प्रकाश करता हुआ विचरता है, तो हे भगवन् ! उसका
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