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भगवती सूत्र - श. १५ गोशालक चरित्र
हुए भी ' में अर्हन्त हूँ' - इस प्रकार मिथ्या वकवाद करता हुआ, केवली नहीं होते हुए भी ' मैं केवली हूँ ' ' - इस प्रकार मिथ्या भाषण करता हुआ, सर्वज्ञ नहीं होते हुए भी ' में सर्वज्ञ हूँ ' - इस प्रकार मिथ्या कथन करता हुआ और 'जिन' नहीं होते हुए भी 'जिन' शब्द का प्रकाश करता हुआ अर्थात् अपने लिए 'जिन' विशेषण का प्रयोग करता हुआ विचरता था ।
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विवेचन - शान, कलन्द आदि छह दिशाचर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के संयम से पतित (पार्श्वस्थ ) शिष्य थे- ऐसा प्राचीन टीकाकार कहते हैं और चूर्णिकार तो इस प्रकार कहते हैं कि ये भगवान् पार्श्वनाथ के सन्तानिये ( शिष्यानुशिष्य ) थ ।
निमित्त के आठ भेद ये हैं-१ दिव्य २ ओत्पात ३ अन्तरिक्ष ४ भोम ५ अंग ६ स्वर ७ लक्षण और ८ व्यञ्जन । इन आठ महानिमित्तों के द्वारा गोशालक लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवन और मरण, इन छह बातों को यथार्थ रूप में बतलाता था ।
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२ - तपणं सावत्थीए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खर, जाव एवं परूवेइ - ' एवं खलु देवाणु - पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे faers, से कहमेयं मण्णे एवं ? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समर्पणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्तेणं जाव छट्ट-टेणं एवं जहा वितियसए नियंठुद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसद्दं णिसामेइ, बहुजणो अण्णमण्णस्स एव माइक्खइ ४ - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जि जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे विहरइ, से कहमेयं मण्णे एवं ' ?
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