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भगवती सूत्र-श. १५ गोगालक चरित्र ।
अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। किसी दिन उस मंखलिपुत्र गोशालक के पास ये छह दिशाचर आये । यथा-१ शान २ कलन्द ३ कणिकार ४ अछिद्र ५ अग्निवेश्यायन और ६ गोमायुपुत्र अर्जुन । उन छह दिशाचरों ने पूर्वश्रुत में कहे हुए आठ प्रकार के निमित्त, नौवां गीतमार्ग तथा दसवां नृत्यमार्ग को अपने-अपने मतिदर्शन से पूर्वश्रुत में से उद्धत कर मंखलिपुत्र गोशालक का शिष्य भाव से आश्रय ग्रहण किया।
तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महाणिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं मवेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूयाणं, सव्वेसि जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं इमाई छ अणइक्कमणिज्जाई वागरणाई वागरेइ, तं जहा-"१ लाभं २ अलाभं ३ मुहं ४ दुक्खं ५ जीवियं ६ मरणं तहो”। तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महाणिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए णयरीए अजिणे जिणप्पलावी, अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, असव्वण्णू सवण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसदं पगासेमाणे विहरइ ।
कठिन शब्दार्थ-अणइक्कमणिज्जाई-अनतिक्रमणीय (विपरीतता से रहित-सत्य) ।
भावार्थ-इसके बाद मंखलिपुत्र गोशालक, अष्टांग महानिमित्त के स्वल्प उपदेश द्वारा सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को इन छह बातों के विषय में अनतिक्रमणीय (जो अन्यथा-असत्य न हो) उतर देने लगा। वे छह विषय ये है-१ लाभ २ अलाभ ३ सुख ४ दुःख ५ जीवन और ६ मरण । मंखलिपुत्र गोशालक, अष्टांग महानिमित्त के स्वल्प उपदेश मात्र से, श्रावस्ती नगरी में जिन नहीं होते हुए भी 'मैं जिन हूँ'-इस प्रकार प्रलाप करता हुआ, अर्हन्त नहीं होते
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