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भगवती सूत्र-श. १४ उ. १० केवली और सिद्ध का ज्ञान
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कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-यहाँ तेजोलेश्या शब्द का अर्थ 'सुख' विवक्षित है। क्योंकि तेजोलेश्या प्रशस्त लेश्या है और वह सुख का कारण है । बारह महीने की दीक्षा-पर्याय से अधिक दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ, अमत्सरी, कृतज्ञ, सदनुष्ठान करने वाला और हितैषी होता है। वह निरतिचार चारित्र का पालन करने वाला होता है । अतएव वह 'शुक्ल' है । इससे आगे बह शुक्लाभिजात (परम शुक्ल) होता है । तत्पश्चात् वह सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त होता है।
॥ चौदहवें शतक का नोवां उद्देशक सम्पूर्ण ।
शतक १४ उद्देशक १०
केवली और सिद्ध का ज्ञान
१ प्रश्न-केवली णं भंते ! छउमत्थं जाणइ पासइ ? १ उत्तर-हंता जाणइ पासइ ।
२ प्रश्न-जहा णं भंते ! केवली छउमत्थं जाणइ पासइ, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ पासइ ?
२ उत्तर-हंता जाणइ पासइ । ...३ प्रश्न केवली णं भंते ! आहोहियं जाणइ पासइ ?
३ उत्तर-एवं चेव । एवं परमाहोहियं, एवं केवलिं, एवं सिद्धं,
जाव
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