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________________ २३६२ भगवती सूत्र-श. १४ उ. १० केवली और सिद्ध का ज्ञान M कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-यहाँ तेजोलेश्या शब्द का अर्थ 'सुख' विवक्षित है। क्योंकि तेजोलेश्या प्रशस्त लेश्या है और वह सुख का कारण है । बारह महीने की दीक्षा-पर्याय से अधिक दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ, अमत्सरी, कृतज्ञ, सदनुष्ठान करने वाला और हितैषी होता है। वह निरतिचार चारित्र का पालन करने वाला होता है । अतएव वह 'शुक्ल' है । इससे आगे बह शुक्लाभिजात (परम शुक्ल) होता है । तत्पश्चात् वह सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त होता है। ॥ चौदहवें शतक का नोवां उद्देशक सम्पूर्ण । शतक १४ उद्देशक १० केवली और सिद्ध का ज्ञान १ प्रश्न-केवली णं भंते ! छउमत्थं जाणइ पासइ ? १ उत्तर-हंता जाणइ पासइ । २ प्रश्न-जहा णं भंते ! केवली छउमत्थं जाणइ पासइ, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ पासइ ? २ उत्तर-हंता जाणइ पासइ । ...३ प्रश्न केवली णं भंते ! आहोहियं जाणइ पासइ ? ३ उत्तर-एवं चेव । एवं परमाहोहियं, एवं केवलिं, एवं सिद्धं, जाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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