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भगवती मूत्र-श १४ उ ९ श्रमण-निर्ग्रथ का सुख
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कठिन शब्दार्थ-अज्जत्ताम-आर्यत्व युक्त ( निष्पाप चर्या वाले ), वीइवयंति-जाते है या उम्लघन करते है।
भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो श्रमण-निर्ग्रन्थ आयेपने (पापकर्म रहित पने ) विचरते है, वे किसकी तेजोलेश्या (तेज-सुख ) का अतिक्रमण करते है ( उनका सुख किन से बढ़कर है) ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! एक मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थ, वाणव्यन्तर देवों को तेजोलेश्या (सुख) का अतिक्रमण करता है (वह वाणव्यन्तर देवों से भी अधिक नुखी है) । दो नास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमणनिग्रंथ, असुरेन्द्र (चमरेन्द्र और बलीन्द्र) के अतिरिक्त दूसरे भवनवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। इसी प्रकार इसी पाठ द्वारा तीन मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ, असुरकुमार देवों को तेजोलेश्या का अति. क्रमण करता है। चार मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रथ, ग्रह गण, नक्षत्र और तारा रूप ज्योतिषी देवों की तेजोलेदया का अतिक्रमण करता है । पांच मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र और सूर्य को तेजोलेल्या का अतिक्रमण करता है । छह मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, सौधर्म और ईशानवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । सात माम की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमणनिग्रंथ, सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की, आठ मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, ब्रह्मलोक और लान्तक देवों की, नौ मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, महाशुक्र और सहस्रार देवों की, दम मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों की, ग्यारह मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ, ग्रेवैयक देवों की और बारह मास की दीक्षापर्याय वाली श्रमण-निग्रंथ, अनुत्तरोपपातिक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर जाता है । इसके बाद शुद्ध और शुद्धतर परिणाम वाला होकर सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा
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