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भगवती सूत्र-स. ५४ उ. ९ मूर्य का अर्थ
जिस प्रकार आत्त पुद्गलों के विषय में कहा, उसी प्रकार इष्ट, कान्त, प्रिय तथा मनोज्ञ पुद्गलों के विषय में भी कहना चाहिये । इस प्रकार ये पाँच दण्डक कहने चाहिये।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, हजार रूपों की विकुर्वणा करके, हजार भाषा बोलने में समर्थ है ?
८ उत्तर-हाँ, गौतम ! समर्थ है। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! वह एक भाषा है या हजार भाषा ? ९ ऊत्तर-हे गौतम ! वह एक भाषा है, हजार भाषा नहीं।
विवेचन-एक समय में बोली जाती हुई सत्यादि किसी भी प्रकार की भाषा, एक जीवत्व और एक उपयोग होने से वह एक भाषा कहलाती है, हजार भाषा नहीं कहलाती।
सूर्य का अर्थ
१०-तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पगासं लोहियगं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाव समुप्पण्णकोउहल्ले जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद्द, जाव णमंसित्ता जाव एवं वयासी
प्रश्न-किमियं भंते ! सूरिए, किमियं भंते ! सूरियस्स अट्ठे ? उत्तर-गोयमा ! सुभे सूरिए, सुभे सूरियस्स अटे।
११ प्रश्न-किमियं भंते ! सूरिए किमियं भंते ! सूरियस्स पभा ?
११ उत्तर-एवं चेव, एवं छाया, एवं लेस्सा ।
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