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भगवती सूत्र-श. १४९ रयिकों और देवों के
अत्ता भणिया, एवं इट्टा वि कंता वि पिया वि मणुष्णा वि भाणि - यव्वा । एए पंच दंडगा ।
८ प्रश्न - देवे णं भंते ! महटिए जाव महेसवखे व हरसं विउव्वित्ता प्रभू भासासहस्मं भासितए ?
८ उत्तर - हंता पभू ।
९ प्रश्न - सा णं भंते ! किं एगा भासा भासासहस्सं ?
९ उत्तर - गोयमा ! एगा णं सा भासा, णो खलु तं भासा - सहस्सं ।
कठिन शब्दार्थ- अत्ता - आत ( दुःख विनाशक और मुखोत्पादक अथवा आप्तएकांत हितकारी ) |
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भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिकों के आत्त पुद्गल ( सुखकारक पुद्गल) होते हैं या अनात्त ( दुःख कारक ) होते हैं ?
४ उत्तर - हे गीतम ! उनके आत्त पुद्गल नहीं होते, अनात्त होते हैं । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमारों के आत्त पुद्गल होते हैं या अनात्त ? ५ उत्तर - हे गौतम ! उनके आत्त पुद्गल होते हैं, अनात्त पुद्गल नहीं होते । इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक कहना चाहिये ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के आत पुद्गल होते हैं या अनात्त पुद्गल ?
६ उत्तर - हे गौतम ! उनके आत्त पुद्गल भी होते हैं और अनात्त पुद्गल भी । इसी प्रकार यावत् मनुष्यों तक कहना चाहिये । वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान कहना चाहिये ।
७ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के पुद्गल इष्ट होते हैं या अनिष्ट ? उत्तर - हे गौतम! इष्ट पुद्गल नहीं होते, अनिष्ट पुद्गल होते हैं ।
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