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________________ २३५६ भागवती सूत्र-. १४ उ. ५ नैरयिको और देवो के पुद्गता चक्षुरिन्द्रिय ग्राह्य होता है और आत्मा का शरीर के साथ कथंचित् अभेद होने और स्वमं. विदित होने के कारण जानता-देखता है । ___ चन्द्र आदि के विमानों के पुद्गल, पृथ्वीकायिक होने मे मचेतन हैं और कर्म-लेश्या वाले हैं। किन्तु उनसे निकले हुए प्रकाश के पुद्गल, कर्म-लेश्या वाले नहीं होते, तथापि उनसे निकले हुए होने के कारण प्रकाश के पुद्गल उपचार से कर्म-लेण्या वाले कहे जाते हैं। नैरयिकों और देवों के पुदगल ४ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! किं अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्गला ? ४ उत्तर-गोयमा ! णो अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्गला । ५ प्रश्न-असुरकुमाराणं भंते ! किं अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्गला ? ५ उत्तर-गोयमा ! अत्ता पोग्गला, णो अणत्ता पोग्गला, एवं जाव थणियकुमाराणं । ... ६ प्रश्न-पुढविकाइयाणं-पुच्छा । ६ उत्तर-गोयमा ! अत्ता वि पोग्गला, अणत्ता वि पोग्गला । एवं जाव मणुस्साणं । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं । . ७ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! किं इट्टा पोग्गला, अणिट्ठा पोग्गला? ७ जत्तर-गोयमा ! णो इट्टा पोग्गला, अणिहा पोग्गला, जहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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